जीजा जी मुझे भी अपने लंड पर झुला दो ना (जीजा-साली की गर्म चुदाई कहानी)
आज, पिछले तीन दिनों की कठिन थकान के बावजूद मेरे चेहरे पर एक बूंद भी थकान नहीं थी। आखिरकार आज मेरे घर मेरी सपनों की रानी, तृप्ति, आई। “जल्दी तैयार हो जाओ, तृप्ति की ट्रेन आने वाली है,” मैंने अपनी बीवी अर्चना से कहा जब मैं ऑफिस से जल्दी लौटा।
“तृप्ति से मिलने के लिए मुझे तुम्हारे कहने की जरूरत नहीं,” अर्चना ने हंसते हुए कहा। वह दो साल बाद मुझसे मिलने आ रही है, जबकि मैं पहले से ही तैयार हूँ। आप लेट गए।
अर्चना की बचपन की सखी थी तृप्ति। उसने पांच साल पहले मेरी शादी में मुझे सबसे अधिक छेड़ा था। उसने जीजा-साली के रिश्ते की शरारतों का ऐसा मजा चखाया था कि आज तक वह मेरे मन में बसी हुई है। जब मैंने घड़ी देखा, तो ट्रेन 6 बजे थी, लेकिन अब साढ़े पांच बज चुके थे।
तुरंत मैंने गाड़ी की चाबी उठाई और 139 डायल कर ट्रेन की स्थिति चेक की। यह पता चला कि ट्रेन दो घंटे लेट गया था। मायूस होकर मैंने अर्चना को बताया।
“अच्छा हुआ, पहले ही पता चल गया,” उसने कहा। अगर नहीं, तो स्टेशन पर दो घंटे बिताना पड़ा होगा।
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थोड़ा समय निकालने के लिए मैंने अपना मोबाइल निकाला और गेम खेलने लगा, लेकिन समय जैसे चक्कर लगा रहा था। दो घंटे युगों की तरह लगे। जब मैच खत्म हुआ, मैंने सोचा कि शायद एक घंटा बीत जाएगा. लेकिन घड़ी में सिर्फ पौने छह बजे थे। मैं बेचैन हो गया। यही स्थिति अर्चना की भी थी। मैंने तृप्ति का नंबर डायल किया, लेकिन उसका फोन बता रहा था कि वह "पहुंच से बाहर" है। हर क्षण काटना कठिन हो रहा था। अंततः मैंने अर्चना से चाय बनाने को कहा और सोफे पर लेट गया।
पांच साल पुराना दृश्य मेरे सामने तैर गया। शादी की रात मेरे सिर पर सेहरा था। बारात लड़की के दरवाजे पर हुई। मिल रहा था। प्रवेश द्वार पर मेरा ध्यान पड़ा। एक दूधिया रंग की हसीना गहरे नीले स्लीवलेस सूट में खड़ी थी। रंग-बिरंगे फूलों से सजा सुनहरा सूट। उसके गुलाबी होंठ, गुलाब की पंखुड़ियों की तरह, उसके कानों में बड़े-बड़े झुमके, लहराते बाल हैं, जो उनसे अलग करते हैं। मैं सिर्फ उसे देख रहा था, जब वह हंसी-मजाक में अपनी सखियों से बात कर रही थी। मैं बार-बार उसकी खूबसूरती में कुछ खोजता था।
मुझे अचानक धक्का लगाया गया। जब मैं खुला तो अर्चना मुझे जोर से हिलाती हुई चाय का प्याला लिए खड़ी थी। “तृप्ति आने वाली है और तुम नींद के सागर में गोते लगा रहे हो!” उन्होंने कहा।
चाय लेकर मैं सिप करने लगा। अर्चना से इधर-उधर की बातें करने की कोशिश की, खुद को शांत करने के लिए। चाय पीकर घड़ी देखने पर सवा सात बज गए थे। तब मेरा फोन बज गया। शांति का फोन था।
Hello, sir! मेरी ट्रेन 15 से 20 मिनट में स्टेशन पर पहुंच जाएगी। “मुझे बताओ, कहां मिलोगे?” उसकी मधुर आवाज से मेरा दिल धड़कने लगा।
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“तुम जहां बोलो, वहां मिल लेंगे,” मैंने कहा और उसके कोच का नंबर और सीट का नंबर पूछा। उसने अर्चना को कहा, “जल्दी चलो।”
“रात हो गई है,” अर्चना ने कहा। तुम गाड़ी ले जाओ, खुशी लाओ। मैं खाना बनाता हूँ।
यह मेरी लॉटरी थी। तृप्ति अकेले चार किलोमीटर की दूरी पर! गैरेज से कार निकालकर मैं स्टेशन की ओर चला गया। ट्रेन की सूचना दी गई थी जब वह स्टेशन पर पहुंचा। मैं तेजी से कोच बी-2 की ओर चला गया और सीट संख्या 16 पर देखा। शांति वहाँ नहीं थी। मैंने सोचा कि सात घंटे का सफर कितना सुहाना होता अगर ये सीट मेरी गोद में होती।
ट्रेन से बाहर निकलते ही मैंने तृप्ति को फोन किया। मैं तभी पीठ पर हाथ मारा। तृप्ति चुस्त पंजाबी सूट में मुड़ा मुस्कुरा रहा था। मैं उसके गुलाबी होंठ को देखकर दंग रह गया।
"जीजा जी, स्टेशन पर ऐसे घूमने से बचिए। “घर जाकर घूर लेना,” उसने क्रोध से कहा।
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मैंने खुद को संभाला, उसका अटैची लिया और कार की ओर चला गया। “लगता है, जीजा जी मुझसे नाराज हैं,” तृप्ति ने कहा, पीछे-पीछे चलते हुए कहा। नहीं बोल रहे हैं।”
ऐसा नहीं है, आदमी। घर पर अर्चना आपका इंतजार कर रही है। "बस जल्दी ले जाना चाहता हूँ", मैंने कहा और अपनी बात रोक दी।
"जीजा जी, इसीलिए मैं आपका प्रशंसक हूँ। आप अर्चना को बहुत ध्यान देते हैं। “मेरे हिसाब से आप दुनिया में सबसे अच्छा पति हो,” उसने कहा।
मैंने मुस्कुराकर ड्राइविंग सीट पर बैठकर उसका अटैची कार की डिक्की में रखा। मैं तृप्ति के बगल में बैठा। उसकी सुगंध मेरे नथुनों में समा गई। मैंने कार को धीरे-धीरे चलाना शुरू किया, ताकि वह चार किलोमीटर तक चले। तृप्ति मेरी ओर तिरछी होकर बैठ गई, सीट पर दायां पैर रखकर। उसके दूधिया बदन पर चमकती गोल्डन चेन पर मेरी दृष्टि पड़ी। उसकी दो पहाड़ियों के बीच की घाटी में चेन का लॉकेट खो गया था। मैं उस घाटी को देखने लगा।
“जीजा जी, कंट्रोल में रहिए,” तृप्ति ने कहा और मेरी ओर देखा। आप सीधे घर जा रहे हैं ना? अर्चना को कहीं नहीं लगाना चाहिए।
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उसने हंस दिया। मैं सकपका गया और कार चलाने लगा। मैं जानने की कोशिश कर रहा था कि क्या वह एक निमंत्रण था या एक चेतावनी। लेकिन उसका साथ मुझे प्रसन्न कर रहा था। घर पहुंचते ही कुछ विचार किए। हम दरवाजे पर अर्चना का इंतजार कर रहे थे। तृप्ति ने कार से भागकर अर्चना से लिपट गया। मैं अपनी कार गैरेज में पार्क कर तृप्ति के सामान लेकर अंदर गया।
मेरे सोफे पर तृप्ति बैठ चुकी थी। उसके सामने वाले सोफे पर अर्चना थी। मैं तृप्ति के बगल में तुरंत बैठा। दोनों सखियां मिल गईं। मैं दिल से चाहता था कि तृप्ति भी मुझसे मिल जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। “खाना तैयार है,” अर्चना ने कहा। दोनों खुश हो जाओ।
Transcend को बाथरूम दिखाया और उसे तौलिया दिया। वह अपना मुंह धोने लगी। मैं उसके चेहरे पर मोतियों की तरह चमकती पानी की बूंदों को देख रहा था। तृप्ति ने तौलिए से मुंह पोंछा और बाहर चली गई। मैंने उसी तौलिए से मुंह पोंछा और उसकी सुगंध को महसूस किया। दोनों सखियां एक दूसरे पर खाना लगा रही थीं। डाइनिंग टेबल पर छोटे-छोटे मुद्दे और मजाक हुए। खाना खाने के बाद हम आइसक्रीम खाने लगे और टीवी देखने लगे।
“तृप्ति, तू सो जा,” अर्चना ने कहा। कल सुबह मैं औघड़नाथ मंदिर जाऊँगा।
मैंने सोने का आदेश पाया। आज मेरा बेडरूम अर्चना और तृप्ति के हवाले था, इसलिए मैं दूसरे कमरे में सोने चला गया। सुबह जल्दी उठा, ट्रैकसूट पहना और जॉगिंग के लिए तैयार हुआ। देखो, अर्चना और तृप्ति कुछ और कर रहे थे।
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“तुम सारी रात सो नहीं रहे हो?” मैंने अनुरोध किया।
“जीजा जी, मैं गलती से आपके बिस्तर पर सो गया,” तृप्ति ने कहा। इसलिए आपकी बीवी सो नहीं पाई। तुमने इस आदत को खराब कर दिया लगता है। आपकी बाहों में सोना उसे अच्छा लगता है। सुबह पांच बजे उठकर मुझे भी जगा दिया।
“हम जिसे प्यार देते हैं, इतना देते हैं कि वह हमारे बिना रह नहीं पाता,” मैंने हंसकर कहा।
मैं तभी आपसे सुझाव लेने आया हूँ। “आप जैसा पति कैसे खोजूँ, जो मुझे भी इतना प्यार दे?” तृप्ति ने शरारती स्वर में कहा।
मेरे शरीर पर घंटियां बजने लगीं। “मैं टहलने जा रहा हूं,” अर्चना ने अपने आप को नियंत्रित करते हुए कहा, जब उसे उसकी अलसाई सुंदरता का आनंद आया।
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“रुकिए, जीजा जी,” श्रीमती ने कहा। मैं भी चलूँगा। थोड़ा शांत हो जाएगा। फिर मंदिर जाना चाहिए।
“जल्दी आ जाना,” अर्चना ने कहा। मैं नहा-धोकर तैयार हूँ।
हम निकल गए। सुबह का मौसम खुशगवार था, लेकिन खुश होने से और भी सुहाना था। मैं उससे बहुत कुछ करना चाहता था। मैं जानता था कि चार दिन बाद तृप्ति समाप्त हो जाएगी। मैं अर्चना से बेइंतहा प्यार करता था और मेरी छवि पत्नी-भक्त की थी। लेकिन खुशी की सुंदरता मुझे आकर्षित करती थी।
हम पार्क गए। “जीजा जी, वापस चलो,” तृप्ति ने थककर कहा। मैं और दौड़ नहीं सकता।
“यह सिर्फ इतना स्टैमिना है?” मैं घबरा गया।
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फिर से उत्तेजित होकर वह दौड़ने लगी। “अब तो मैं गिरने वाली हूं,” वह एक बार फिर बोली।
उसे बेंच पर बैठने को मैंने कहा। एक चक्कर लगाकर वापस आया तो देखा कि उसकी तरबतर लेटी पसीने से हांफ रही थी। “क्या हो गया?” मैंने अनुरोध किया।
“जल!” कमजोर आवाज में उसने कहा।
मैं नल की ओर मुड़ गया। गिलास नहीं था, इसलिए उन्होंने हाथों में पानी भरकर लाया। पानी उसके गुलाबी होंठों पर डाला। उसने पिया।
“और क्या लाऊँ?” मैंने अनुरोध किया।
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“इतने प्यार से पिलाओगे तो सारा दिन यहीं लेटकर पानी पीती रहूंगी,” उसने क्रोध से कहा।
मैं प्रसन्न हो गया। उसके ऊपर पहाड़ियों पर मेरी दृष्टि पड़ी। उसके पास ब्रा नहीं थी। उसके चुचूक स्पष्ट थे। मेरी पैंट हिलने लगी। तृप्ति ने मेरी हालत देखकर शरमाकर मुस्कुरा दी।
“घर जाओ?” मैंने अनुरोध किया।
वह सहमत होकर मेरे पीछे चल पड़ी। रास्ते में मैंने वातावरण को शांत करने का प्रयास किया। “हां, तो आज मैडम का कार्यक्रम क्या है?”
हम सिर्फ तुम्हारे डिस्पोजल पर हैं, जीजा जी। आपका कार्यक्रम हमारा होगा।
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“पटक?”
“हाँ, सर!”
"बाद में मुकर मत जाओ"
हाय, जीजा जी। मैं जानता हूँ कि तुम मेरा बुरा नहीं करोगे। तुम मेरी आदर्श प्रेमिका हो। मैं आपकी हर बात पर भरोसा करता हूँ।
“यार, तुम भी मेरी ड्रीम गर्ल हो,” मैंने कहा। पहले नहीं मिली? वरना आज तुम मेरे साथ होते।
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उसने हंस दिया। तुम्हारी हर क्रिया अर्चना को बतानी चाहिए लगता है। वैसे भी, आप बहुत कुछ देखते हैं।
“साली जी, हर व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता है।” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं अपनी जरूरत को ताकता हूँ, और तुम अपनी।"
शरमाकर उसने नजरें झुका दीं। उसकी ये कृपा मुझे मार डालती थी। मैंने सोचा कि कोशिश करके देखेंगे, शायद कुछ हो जाए। घर जाओ। वह नहा-धोकर तैयार हो गई। उसके गीले बालों की गंध मुझे आकर्षित करती थी। मैं चिपक गया। “जीजा जी, संभल के,” तृप्ति ने हंसते हुए कमरे में कहा। घर में एक अतिरिक्त व्यक्ति है।
मैंने साहस दिखाते हुए कहा, “कोई और नहीं, बस मेरी प्यारी साली है।” और साली आधी घरवाली है।
“ये बात तो सही है,” अर्चना ने समर्थन दिया। मैं संजीवनी पाया।
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तिरुपति नहाने गई। बाहर निकलते ही एक स्लीवलेस सूट में अप्सरा दिखाई दी। गीले बालों की बूंदें मोतियों की तरह चमकती थीं। मुझे देखकर उसने मुस्कुराया।
“नहाना नहीं है?” उन्होंने पूछा।
आज अपने हाथ से नहलाओ। “मैं भी इतना सुंदर हो जाऊँगा,” मैंने कहा।
“अर्चना है ना,” उसने हंसकर कहा। हमें पीट-पीटकर निकाल देगी।
“अगर तृप्ति तैयार है नहलाने को, तो मुझे कोई परेशानी नहीं,” अर्चना ने कहा।
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“जाओ, नहा लो,” तृप्ति ने कहा, सिर झुकाकर मुझे बाथरूम की ओर धक्का देते हुए कहा।
मैं नहाने के बाद बाहर निकला और अपनी बाइक निकाली। मैं तृप्ति या अर्चना को देखना चाहता था। तृप्ति को अर्चना ने बीच में बैठने को कहा। अर्चना ने कहा कि तृप्ति हिचकी, लेकिन बीच में बैठ गई। ये मेरे लिए बाबा औघड़नाथ का वरदान था।
बाइक चालू की। मेरी कमर से खुशी के खरबूजे टकरा रहे थे। कुछ दूर बाद, उसने मेरी कमर को कुचल दिया। “वाह!” मेरे मुख से बाहर निकला।
“क्या हो गया?” अर्चना ने आग्रह किया।
“कुछ नहीं,” मैंने कहा और बाइक चला गया। तृप्ति मुस्कुरा रही थी और जानबूझकर अपने खरबूजे मेरी कमर से टकरा रही थी, जब मैं शीशे में देखा। मैं धीरे चलने का निर्णय लिया। मंदिर से लौटते समय तृप्ति मुझसे सटकर बैठी। मेरी कमर उसके खरबूजे से घिरी हुई थी। ये एक अच्छा संकेत था।
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मैं घर पहुंचकर नाश्ता करके काम पर चला गया। दो घंटे बाद वापस आने पर दोनों सखियां चर्चा में थीं। रविवार था, तो मैंने अर्चना से कहा, "खाना बना लो।" तीन बजे सिनेमा देखने जाना है, फिर मॉल जाना है। रात को बाहर खाकर वापस आ जाएंगे।
दोनों खुश थीं। अर्चना भोजन करने चली गई। तृप्ति और मैं टीवी देखने लगे। मैं उसके बगल में था। मैं टीवी कम देख रहा था और उसे ज्यादा देख रहा था।
“जीजा जी, टीवी की हीरोइनें मुझसे ज्यादा सुंदर हैं,” तृप्ति ने कहा और मेरी ओर देखा। यह देखो।
“मैं सिर्फ उधर देख रहा हूँ,” मैंने कहा।
“पर आप मुझे देख रहे हैं,” उसने नजरें झुकाकर कहा।
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हां, मैं टीवी की हीरोइनों को उनके आसपास की हीरोइनों से तुलना कर रहा हूँ। बिना लिप्स्टिक के, आपके होंठ गुलाबी हो जाएंगे। टमाटर गाल को लाल करता है। गोरी-गोरी बाहें गंगा-जमुना की तरह बहती हैं। बाल लहराते हुए, दिल पर छुरियां चलाते हुए
मेरी बात का विरोध नहीं करती थी, हालांकि शरमाकर नजरें झुका लेती थी। मैंने साहस बढ़ाया। “भगवान ने तुम्हें ऐसी सुंदरता दी है कि कोई सानी नहीं।” उसके वक्ष पर मेरा संकेत था।
उसने दुपट्टे से ढकने का प्रयास किया। मैंने उसके हाथ को रोक दिया। “कम से कम दूर से ही नैन सुख लेना चाहिए।”
“आप कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ रहे हो, जीजा जी,” उसने कहा।
“साली आधी घरवाली है।” मैंने उसकी दूधिया बांह पर हाथ फेरा और कहा, "उसकी सुंदरता निहारने का हक तो बनता है।" मखमली समझ आई।
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“ओह!” मुंह से निकला।
मैंने सोचा कि उसे मेरा स्पर्श पसंद आया। मैंने एक बार फिर कोशिश की। "आहह..." उसकी आँखें नम हो गईं।
“क्या हो गया?” मैंने अनुरोध किया।
“जीजा जी, गुदगुदी होती है,” उसने रसोई की ओर देखा। रहने दें।
मैं TV देखने लगा। “नाराज हो गए?” उसने मासूमियत से पूछा।
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मैं चुपचाप रह गया।
“ठीक है, करो। लेकिन धीरे-धीरे। “बहुत गुदगुदी होती है।”
मैंने उसकी बाहों पर हाथ फेरने लगा। उसने अपनी आंखें बंद कर लीं। दरवाजा कंपन था। होंठ चिल्ला रहे थे। “जीजाजी, तुम्हारे होंठ बहुत सुंदर हैं,” मैंने धीरे से कहा।
सिर्फ होंठ? उसने आंखें खोलकर पूछा।
नहीं, पूरी तरह से। मैंने कहा, "पर शुरुआत कहीं से तो करनी थी।"
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ओह, ये सिर्फ शुरुआत है। अंततः क्या करेंगे? उसने कनखियों पर दृष्टि डाली।
मैंने जवाब नहीं दिया। आपको साड़ी में नहीं देखा गया। आज एक फिल्म में साड़ी पहनना।
“यह सिर्फ इतना ही है, जीजाजी? आपका आदेश, सर! उसने कुछ कहा।
“खाना तैयार है,” अर्चना ने कहा।
हम डिनर टेबल पर चले गए। खाना खाकर सिनेमा देखने निकले। फिर मैंने बाइक निकाली। तृप्ति ने क्रीम साड़ी पहनी हुई थी। पतला ब्लाउज, उसके गोरे कंधे चमकते हुए। रब ने बना दी जोड़ी की टिकट ली। तृप्ति मेरे बगल में बैठी, और अर्चना कोने की सीट पर बैठी।
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अंधेरा छा गया। पहले मैंने अर्चना की बांह सहलाने लगा। उसकी धड़कन तेज हुई। वह मेरी जांघ को सहलाने लगी। मुझे अंगड़ाई लगने लगी। अर्चना ने अचानक पैंट के ऊपर से मेरा लंड पकड़ लिया। नाचने लगे। “हम्म...” मैंने कहा।
तृप्ति ने मेरी ओर देखकर सुना। हमारी दृष्टि टकराई। “क्या हुआ?” उसने आंखें मटकाकर पूछा।
“कुछ नहीं,” मैंने सिर हिलाकर कहा।
पर सब उसे दिखाई दिया। मैंने उसकी बांह पकड़ी और उंगलियों को घुमाने लगा। उसने छुड़ाने का प्रयास किया, लेकिन मैंने पकड़ा। उसने त्याग कर दिया। तृप्ति मेरी उंगलियों से खेलने लगी। मेरे लंड पर चल रहे अर्चना के हाथ पर उसकी नजरें थीं।
इंटरव्यू के बाद फिल्म फिर से शुरू हुई। भी हमारी खेल। मूवी खत्म होने पर वे मॉल चले गए। मैंने अर्चना से अकेले में सेक्स की इच्छा व्यक्त की।
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“तृप्ति के जाने तक सब्र करो,” उसने कहा। फिर जो चाहे करो।
मैंने कहा, "देख लो।" मैं हर दिन आपकी जरूरत पड़ती है। मैंने एक रात बिताई है। तुम्हारी सखी पर मेरा हाथ कहीं न चला जाए।
उसने हंस दिया। “तुम बीमार हो जाओगे!”
“क्या बात है?” तृप्ति ने पूछा। दोनों बहुत खुश दिखते हैं।
“तेरे जीजाजी तुझे आधी से पूरी घरवाली बनाने के मूड में थे,” अर्चना ने कहा। मैंने बताया कि पूरी को खोने से बचना चाहिए।
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रात को डिनर करके हम हंसते-बात करते घर लौटे। अर्चना थक गई और सो गई। मैं थक गया था। मूवी के दौरान मेरा मन बदल गया। “तृप्ति, मैं सो रही हूँ,” अर्चना ने कहा। फ्रिज दूध है। अपने जीजा को पिलाओ।
मैं टीवी देखना शुरू कर दिया। मेरे बगल में तृप्ति खुश होकर बैठ गई। पांच मिनट बाद, उन्होंने कहा, “जीजा जी, मैं बदलकर आती हूँ।”
“अर्चना सो गयी है?” मैंने अनुरोध किया।
हाँ। “और मैंने कहा था कि आपको दूध पिला दूं,” उसने मुस्कुराते हुए कहा।
मैंने उसका हाथ थाम लिया। थोड़ी देर मेरे पास बैठो। साड़ी में आपको देखना चाहता था।
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“दोपहर से तो मैं साड़ी में हूँ,” उसने कहा।
तब यह ध्यान नहीं था। थोड़ी देर ऐसा करो।
मेरे सामने खड़ी हुई। “जी भरकर देखो।”
उसके उरोज जैसे मुझे पुकार रहे हों। मैं उठकर उसके सामने गया। “आप इतना मेंटेन कैसे रहते हैं?”
ऐसा कुछ नहीं है। “ये सब तुम्हारी आंखों का धोखा है,” उसने हंसकर कहा।
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उसकी बाहों पर मैंने अपनी उंगलियां फेरी। "उईईई..." उसकी आँखें नम हो गईं।
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“यह बहुत अच्छा है,” उसने शरमाते हुए कहा।
मैं उसके पीछे गया और उसके पेट पर उंगलियां फेरने लगा। उसने अपने आप को कस लिया। “ऊ... आह... सीईईई...” की आवाजें निकलने लगीं, होंठ फड़फड़ाते हुए और आंखें बंद करके। मैंने दस मिनट तक उसके नंगे शरीर पर उंगलियां फेरीं। उसने कसमसाते रहे। मेरी उंगलियां उसके पेट के ऊपरी भाग की ओर चली गईं, लेकिन ब्लाउज ने मुझे रोका। जल्दबाजी में मैंने उसके नंगे अंगों से खेलना जारी रखा।
उसके पेट पर उंगलियां मलाई देती थीं। मैं खुशी को अपनी ओर खींच लिया। मेरा सीना उसके सीने से टकरा गया। उसके नितंबों के बीच मेरा लंड मौजूद था। मैं उसके कंधे पर मुंह डाल दिया। “तृप्ति, तुम बहुत सुंदर हो।”
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“जीजा जी... बस... सामने से साड़ी में देखने को बोला था... प्लीज... अब जाने दीजिए...” वह मिमियाती हुई बातें करती हुई मुझसे मिलने लगी।
मैं आगे हूँ। आगे की राह खुली है। “तुम चाहो तो जा सकती हो,” मैंने उसे बताया।
“छोड़ो... मुझे...” उसने बेल की तरह मुझसे लिपटना शुरू किया।
उसके कान के नीचे मैंने अपने होंठ रखे। "आहहह..." उसकी आवाज टूट गई। उसके संवेदनशील अंगों को मेरे होंठ उत्तेजित करने लगे। मैंने दांतों से साड़ी का पल्लू खींचकर गिरा दिया। वह उसी जगह थी, जहां कपड़े शायद बाधा बन सकते थे। उसकी नाभि पर मेरा एक हाथ था, ब्लाउज के गले में दूसरा। चुम्बन चलते रहे।
“जीजा जी... बस... अब और नहीं...” उसकी कामुक आवाज कमजोर हो गई।
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मैंने उसे चक्कर लगाया। उसकी गर्म सांसें, फड़फड़ाते होंठ और बंद आंखें मुझे शांत करती थीं। मैंने उसके होंठों पर मुस्कुराया। उसने मेरे होंठों से खेलना शुरू किया। मेरी कमर पर उसका हाथ था। हम आलिंगन में कुछ मिनट रहे। मैंने अलग होने का प्रयास किया। उसने अपनी आंखें खोली। मेरे सीने में उसने छिपने लगा।
फिर मैंने उसके कान के नीचे चुंबन लगाना शुरू किया। धीरे-धीरे साड़ी को पेटीकोट से निकाला। उसके चेहरे को पकड़ा और उसे ऊपर उठाया। हमारी दृष्टि डूबी हुई थी।
“जीजा जी...” उन्होंने कहा।
“हम्म...”
“मुझे बहुत गुस्सा आया है...”
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“क्या है?”
“टॉयलेट जाना होगा...”
मैंने अटैच टॉयलेट की ओर देखा। “जा, और अर्चना का रात का गाउन पहन।”
वह टॉयलेट चली गई। मैं बिस्तर पर गया। अर्चना सोती हुई थी। मैं खुद को नियंत्रित नहीं कर सका, हालांकि मैं उसे धोखा नहीं देना चाहता था। उसने ड्राइंग रूम में वापस आकर टीवी को बंद कर दिया, गुलाबी बल्ब को जलाया और बिस्तर को साफ किया। तृप्ति रात के गाउन में निकली।
“वाह, क्या आपने पिया?” मैंने अनुरोध किया।
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“हां, साड़ी गीली हो गई थी...” उसने कहा, शरमाकर।
"अपने रस से", मैं हंसकर बोला।
वह मुस्कराया। “इस खेल में साथ दोगी, तो ज्यादा मजा आएगा,” मैंने कहा। शरमाओगी, तो नहीं होगा।
“जीजा जी, १० बज गए।” इस तरह जाना चाहिए। “मैं दूध बनाकर लाती हूँ।”
मैंने उसे अपनी बाहों में भरकर बिस्तर पर रखा। उसकी सांस बहुत तेज थी। मैंने उसके हाथों से उसके उरोज सहलाए। “जीजा जी... अब बर्दाश्त नहीं होता... प्लीज... जाने दो...” कहते हुए उसने अपनी पहाड़ियों के बीच मेरा सिर दबा लिया।
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मैंने रात की पोशाक के हुक खोले। उसके गोरे पहाड़ों को देखा गया। मैंने उसके होंठों को चूम लिया। उसने मेरे होंठ चूस लिए। मैंने तुरंत उसे लिटाया। गले, कान, आंखें, गाल और होठों पर चुम्बन दिया। उसका शरीर गर्म हो गया। मैं उसकी कमर से पकड़ा गया। मैंने रात का गाउन उतार दिया। उसकी पिंडलियां रेशम की तरह नरम थीं। “आहह... जीजा जी... बस... करो...” उसकी सिसकारियां मजबूत थीं।
उसकी पैंटी पर मेरा हाथ पहुँचा। वह सूखी थी। मैंने रात के कपड़े निकाले। उसने ब्रा और पैंटी पहनी हुई थी। “दूध नहीं पिलाना चाहते हो?” मैंने अनुरोध किया।
"आहह... पियो ना... मैंने कब रोका..." उसने कहा और मुझे सीने से लगाया।
मैं ब्रा के हुक खोले। मेरे हाथ में उसका दुग्धकलश था। भूरे चुचूक बहुत खूबसूरत लग रहे थे। मैंने उन्हें मदद की। उसने मेरे होंठ चूस लिए। मैंने एक चुचूक उठा लिया। “आहह... मुझे बुरा लग रहा है...” वह चिल्लाई।
“हल्के से?” मैंने अनुरोध किया।
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मेरा सिर उसने चूमने लगा। उसके चुचूक मैं चूस रहा था। उसकी योनि मेरे हाथ में थी। वह मेरे अंडरवियर में हाथ डालकर अपने नितंब सहलाने लगी। लास्टिक दर्द करेगा। क्या मैं अपने अंडरवीयर उतार दूं? मैंने अनुरोध किया।
उसने कोई उत्तर नहीं दिया। मैंने अपना अंडरवियर उतारा। उसने मेरे नितंबों पर खेल किया। “पूरे बदन में चींटियां रेंग रही हैं...” उसने अपने नितंब उछालते हुए कहा।
मैंने उसकी पैंटी निकाली। उसकी योनि में जंगल था। मैंने जीभ अंदर सरकाई और उंगलियों से रास्ता बनाया। “आह... अम्म...” वह रोने लगी। उसका रस मैं चाट रहा था। उसने अपने पैर पटकने शुरू किया। उसका शरीर अकड़ा हुआ और उसकी छाती ढीली हो गई।
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मैंने बाथरूम में अपना मुंह धोया। तृप्ति बाथरूम में जा रही थी जब वह वापस आया। “धोना है... पेशाब करना भी है...” उसने कहा।
मैंने उसे मदद की। फर्श पर उकड़ू बैठकर उसने पेशाब करना शुरू किया। मुझ पर उसकी दृष्टि पड़ी। तुम बहुत गंदे हो, जीजा जी। क्या नज़र आ रहा है? आओ।
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आप पूरी तरह से प्रसन्न हैं। मैंने कहा कि मैं अभी अधूरा हूँ।
उसने हंस दिया। “आप जानते हैं! क्या करूँ?
उसने अपनी योनि धोई। मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और उसका हाथ अपने लंड पर रखा। उसे समझाने लगी। मैंने उसे टॉयलेट की सीट पर रखा। मैं उसके लिंग से खेलने लगा। अग्रभाग को जीभ से चाटकर छेड़ती। मैं बाढ़ को महसूस किया। मैंने उसके मुंह में लंड डाला, लेकिन उसने मुंह नहीं खोला। मैंने उसके स्तनों के बीच लंड को दबाया। “आहह...” पिचकारी निकली और उसके स्तनों और गले पर गिरी।
“आपको मलाई पसंद है? खाओगे? मैं घबरा गया।
वह मुस्कराया। हमने स्नान किया। “तुम इतनी सुंदर हो, लेकिन नीचे जंगल क्यों?” मैंने पूछा। सफाई करो।
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मैं नहीं जानता था कि आप ये सब करेंगे। “घर जाकर करूंगी,” उसने घोषणा की।
मैंने शेविंग किट लेकर उसकी योनि को साफ किया। अब उसकी रोशनी चमक रही थी। उसे मैंने गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटाया।
“जीजा जी, अब और नहीं...” उसने कहा।
इतनी कठोरता से जंगल को साफ किया। “तुम मेहनताना तो दोगी।”
“इसके बाद नहीं!” उठने लगी।
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“ठीक है, नहीं चाहती तो जा,” मैंने कहा।
“आप इतने अच्छे क्यों हो?” उसने तिरछी नजरों से पूछा।
“मैंने क्या किया?”
मैं तुम्हारे सामने नंगी हूँ। मैं आपको मना नहीं कर सकती। तुम फिर भी पीछे हट गए।
सैक्स प्यार है। ना तो खुशी मिलती है, ना प्यार।
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उसने मेरी बात सुनी। “अगर कोई और होता, तो मेरे मना करने पर भी सब होता।”
मैं ऐसा नहीं हूँ। मैंने मुस्कुराकर कहा, "उठो, कपड़े पहनो और सो जाओ।"
मेरी गोद में सोफे पर बैठ गई। यही कारण है कि मैं आपका प्रशंसक हूँ, जीजा जी। “काश मैं भी आप की तरह होता।”
नहीं, प्रसन्नता। “अब जाओ।”
उसने मेरी गोद में बैठकर अपने होंठों को मेरे होंठों पर लगाया। “आहह...” मैंने उसके होंठ चूसने शुरू किया। उसने मेरी योनि को छुआ। मैंने उसे बिस्तर पर बिठा दिया। मैं उसके लिंग को चूसने लगा। मैंने उसके स्तनों को दबाते हुए उसके होंठ चूम लिया। “उम्म... धीरे... और करो...” वह बोली।
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मैं उसके ऊपर आ गया। मेरा बदन चुम्बन से भरने लगा। उसकी योनि मेरे मुंह पर पड़ी हुई थी। मैंने उसकी चुंबन की। “हम्म...” उसने फुदककर कहा। मैंने अपनी जीभ उसकी योनि में डाली। रस टपका रहा था। मैंने उसके गुदा में उंगली डाली। “आह... नहीं...” उसने चिल्लाया।
गुदा और योनि दोनों से मैंने उसे उत्तेजित किया। मैं पागल हो गया। उसका शरीर अकड़ा हुआ और उसकी छाती ढीली हो गई। मैं उसे अपनी गोद में लेकर चाटने लगा। उसके पास नमकीन पसीना था। मैंने गद्दी उसके नितंबों के नीचे रखी। उसकी योनि उठी हुई थी। मैंने उसकी फुद्दी पर लंड घिसा। “जीजा जी... अब तड़पाओ मत... अंदर डाल दो...” उसने कहा।
धीरे-धीरे मैंने लंड अंदर डाला। “आहह... हम्म...” वह चिल्लाया। मैं पूरी तरह से लंड डाला। मेरे कंधों पर उसने अपनी टांगें रखीं। मैंने उसके स्तनों को जोर से धक्का दिया। “आह... ऊह... सीईईई...” उसने चिल्लाया। “चोदो... और जोर से... मेरी चूत फाड़ दो...” उसकी गंदी बातें मुझे और भी उत्तेजित करती थीं।
“तृप्ति, तेरी चूत कितनी टाइट है... ले मेरा लंड... पूरा ले...” मैंने कहा।
“आह... जीजा जी... चोदो... मेरी फुद्दी को रगड़ दो...” उसने चिल्ला दिया।
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कमरे में धक्कों की आवाज, “थप-थप-थप...” गूंज रही थी। उसकी चूत में मेरा लंड अंदर-बाहर हो रहा था। उसकी गीली चूत से रस निकल रहा था। मैं गति बढ़ाता हूँ। “आह... मैं गया...” मैं हंस पड़ा। उसने अपनी टांगें अकड़ीं। वह भी गिर गई।
मैंने अपना लंड बाहर निकाला। मैं उसे सहलाने लगा। “चूहे की तरह शेर पहले कितना दहाड़ता था,” उसने हंसकर कहा।
हम शौचालय गए। दोनों को धोया। तृप्ति ने ब्रा, पैंटी और नाइट गाउन पहना था। दूध लाया। हम दूध पिए। अर्चना के पास उसने सोया। बिस्तर पर मैं सो गया।
सुबह 5:30 बजे मैं उठ गया था। मैं अर्चना के बगल में था। मुझे सहला रही थी। “आज उठ गई?” मैंने अनुरोध किया।
“आप रात भर मूड में थे।” मैं सो रहा था। पानी पीने उठते ही तुम्हें देखने का मन हुआ। Trish भी सो रही है। “इश्क की लड़ाई क्यों नहीं करनी चाहिए?” उसने मेरे होंठों को चूम लिया।
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पर रात भर की थकान और ग्लानि मुझे परेशान करती रही। “क्या हुआ?” अर्चना पूछा। “अच्छा नहीं है?”
मैं चुपचाप रह गया। उसे मेरी चुप्पी बेचैन करती थी। “क्या हुआ, बताओ?” वह लगातार प्रश्न करती थी।
मैंने साहस किया। “मैं कुछ बताना चाहता हूँ।”
“हाँ, बताओ।”
मैं उसकी गोद में अपना सिर डालकर लेट गया। शादी की रात से कल रात तक सब कुछ बताया। वह ध्यान से सुनती रही। मैं बोल रहा था। मैं सब कुछ कहकर चुप हो गया।
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मेरे गाल पर अचानक एक बूंद पानी गिरी। अर्चना की आंखें आंसू से भर गईं। “ओह!” मैंने बताया।
“शांत रहो!” उसका रोना तेज हो गया।
उसके पैरों में मैं बैठ गया। मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ। सजा देना लेकिन रो मत।
वह चली गई। मैंने उसे पूरे घर में खोज निकाला। वह कहीं नहीं मिली। मैं बैठ गया। उसके फोन बेडरूम में था। क्या वह सब छोड़ दी? मैं बाहर निकलना चाहता था। तृप्ति अभी भी सो रही थी। मैं छत पर गया और फोन डायरी और फोन उठाया।
अर्चना दीवार से टेक लगाकर छत पर बैठी थी। मैं भाग निकला। "जानू, बिना मुझे बताए क्यों चली गई?" मैं मर गया।
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उसने पीछे मुड़ कर देखा। उसके बगल में मैं बैठ गया। उसका हाथ थाम लिया। उसने रोने लगा। मैं पानी लाया।
“मुझे पता है, तू मुझसे बहुत प्यार करता है,” उसने कहा। सुबह ही सब कुछ बता दिया। कोई और होता तो कोई संकेत भी नहीं होता। मैं तुम्हारे प्यार का कोई सबूत नहीं चाहता। पर नियंत्रण नहीं पा रही है।
मैं चुपचाप रह गया।
“मुझे नहीं पता था, जुबान से निकली बात सच हो जाएगी,” उन्होंने कहा। मैं और तृप्ति बचपन की सखियां हूँ। मम्मी-पापा ने मजाक में कहा कि आप दोनों एक ही व्यक्ति से शादी करेंगे। मैं नहीं जानता था कि मजाक सच होगा।
मैं नहीं करता, अर्चना। आप गलत विचार कर रहे हैं। तुम मेरी पत्नी हो। मैंने कहा, "मुझसे गलती हुई, लेकिन तेरा स्थान कोई नहीं ले सकता।"
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हम कुछ देर बाद नीचे गए। तृप्ति जाग गई। कहाँ गए थे? “वह खोज रही थी,” उसने कहा।
“आंखें जल्दी खुल गईं।” “हम छत पर हवा खाने गए थे,” अर्चना ने सामान्य रूप से कहा।
मैं घबरा गया। उसने सामान्य व्यवहार दिखाया। मैं भी हर दिन काम करने लगा।
कहानी आपको कैसी लगी? कमेंट सेक्शन में अपना विचार अवश्य व्यक्त करें।
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